Environmental Protection: How environmental protection is a serious challenge? पर्यावरण संरक्षण एक गंभीर चुनौती

Ritesh Ranjan
10 Min Read
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  • Global warming

पर्यावरण संरक्षण एक गंभीर चुनौती

“माता भूमि:,पुत्रो अहं पृथिव्या” अर्थात्
भूमि माता है और हम इस पृथ्वी के पुत्र है। अथर्ववेद का यह सूक्त पृथ्वी के महत्व, पर्यावरण, जीव-जगत और चर-अचर के संबंधों को दर्शाता है।

पर्यावरण शब्द की उत्पत्ति:

पर्यावरण शब्द एक फ्रेंच शब्द “Environia” से लिया गया है जिसका अर्थ है आस पास | संस्कृत में पर्यावरण शब्द परि और आवरण शब्द से मिलकर बना है जिसका सामान्य अर्थ है चारों ओर से ढका हुआ। यानि यह अजैविक (शारीरिक या निर्जीव) और जैविक (जीव ) पर्यावरण दोनों को दर्शाता है।

रामचरित मानस का पद हम सभी ने पढ़ा और सुना भी हैं।
छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा॥ यह पद पृथ्वी के पांच अजैविक (abiotic) तत्व तथा उससे निर्मित जैविक (biotic) तत्वों के बारे में जानकारी देता हैं।

पृथ्वी पर जीवन अस्तित्व के लिए पर्यावरण के इन तत्वों का समन्वयन और संतुलन दोनों आवश्यक कैसे है ?

पृथ्वी पर जीवन अस्तित्व के लिए पर्यावरण के इन तत्वों का समन्वयन और संतुलन दोनों आवश्यक है। लेकिन आज विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण की स्थिति सामान्य नहीं रह गई हैं। पर्यावरण असंतुलन के कारण प्रदुषण, जैव विविधताओं का नुकसान, जलवायु परिवर्तन , वैश्विक महामारी जैसे समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। आज मौसम चक्र बिगड़ चुका हैं। अब हर साल एक्सट्रीम मौसम गतिविधियां देखने को मिल रही हैं एक तरफ मार्च से भीषण गर्मी की शुरुआत हो जाती है, तो कभी दिसंबर में कम ठंड, फिर अचानक भीषण ठंड पड़ती ।

जलवायु परिवर्तन के कारण 2024 एवं 2025 में वसंत ऋतु गायब सा रहा। 2025 का जनवरी इतिहास में तीसरा सबसे गर्म जनवरी रहा। वहीं यूरोपीय जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस के रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा, ऐसा पहली बार रहा जब वैश्विक औसत तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। अत्याधिक गर्म मौसम के कई नुकसान हैं जो स्वास्थ्य, कृषि और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

हाल ही के दिनों की कुछ घटनाएं :

अभी 5 अगस्त 2025 को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली में बादल फटने के बाद आई फ़्लैश फ्लूड (अचानक आने वाली बाढ़) के चलते कई लोग मारे गए 50 से ज्यादा लोग लापता हो गए। पिछले साल केरल के वायनाड में हुई लैंडस्लाइड में 400 से ज्यादा लोग मारे गए थे। इन घटनाओं में सामान्य बात यह थी कि दोनों पहाड़ी क्षेत्र थे। आज पहाड़ों में विकास के नाम पर मानव गतिविधियों की बढ़ोतरी हुई है। शहरीकरण , सड़क चौड़ीकरण, होटल, बनाने के लिए पेड़ो की भीषण कटाई की गई , जैसा कि हम जानते हैं पेड़ो के जड़ मिट्टी को बांध कर रखते हैं जो कि इन प्राकृतिक आपदाओं से बहुत हद तक हमारी रक्षा करता है। पहाड़ों या मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ में हुए संसाधनों के क्षति का एक प्रमुख कारण भ्रष्टाचार भी है, लोग अवैध तरीके से घर बनाकर नदियों के जल अधिग्रहण क्षेत्र में बस जाते फिर ऐसे अचानक आने वाले बाढ़ या नदियों में होने वाले कटाव से बुरे तरीके से प्रभावित होते हैं।

आज भारत में बारिश का मौसम भी सामान्य नहीं रह गया। जहां झारखंड में अब तक वर्षा सामान्य से अधिक है वहीं बिहार में अब तक 40 % तक कम बारिश हुई हैं। जबकि दोनों गंगा के मैदानी क्षेत्रों के पड़ोसी राज्य है।

भारतीय मौसम विभाग (IMD) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने वर्ष 2022 में सार्वजनिक बयान दिया था। उनके अनुसार और जलवायु परिवर्तन के कारण हल्की वर्षा की घटनाओं में कमी आई है तथा भारी वर्षा की घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। IMD के पास उपलब्ध मानसूनी वर्षा के डिजिटल डेटा के हिसाब से उत्तर, पूर्व और उत्तर-पूर्व भारत के कुछ हिस्सों में वर्षा में कमी दिखाई देती है, जबकि पश्चिम में कुछ क्षेत्र जैसे कि पश्चिमी राजस्थान में वर्षा में वृद्धि दिखाई देती है।
असमान्य वर्षा के कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न होती हैं। संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD) के पक्षकारों का 16वाँ सम्मेलन (COP16) दिसंबर 2024 , सऊदी अरब के रियाद में आयोजित हुआ, जिसमें लगभग 200 देशों ने भूमि पुनरुद्धार तथा सूखा प्रतिरोधक क्षमता को प्राथमिकता देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की। UNCCD COP 16 और यूरोपियन कमीशन जॉइंट रिसर्च सेंटर के द्वारा संयुक्त रूप से विश्व सुखा मानचित्र (World Drought Atlas) जारी किया गया था । इस रिपोर्ट के अनुसार अगर वर्तमान की स्थितियां बरक़रार रही तो वर्ष 2050 तक विश्व की 75% आबादी सूखे की स्थिति से प्रभावित होगी। यानि हर 4 में से तीसरा व्यक्ति सूखे का दंश झेलेगा। ऐटलस इस बात पर जोर देता हैं की भारत की लगभग 60% कृषि भूमि वर्षा आधारित है , जिससे यह वर्षा पैटर्न में होने वाले उतार चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हो जाती हैं।

जीवन अस्तित्व के लिए जल सबसे बड़ा कारक है। जल का उपयोग हमारे दैनिक जीवन , सिंचाई , औद्योगिक स्थानों आदि स्थानों पर है। आज भारत में बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन, असमान्य वर्षा, सुखा, औद्योगिकरण के कारण जल संकट उत्पन्न हो रहा हैं। ग्लोबल कमिशन ऑन द इकोनाॅमिक्स ऑफ वाटर’ की एक हालिया रिपोर्ट में वैश्विक जल संकट की चेतावनी दी गई है, जिसमें वर्ष 2030 तक मांग आपूर्ति से 40% अधिक होने का अनुमान है, जिससे खाद्य उत्पादन और अर्थव्यवस्थाओं को खतरा है। भारत में भूजल पर निर्भरता काफी अधिक है। 62% भूमिगत जल खेती में उपयोग किया जाता है, जबकि 85% ग्रामीण इलाकों तथा 50% शहरी क्षेत्रों की आबादी भूमिगत जल पर आश्रित हैं। भूमिगत जल के दोहन के अनेकों दुष्परिणाम है जैसे कि जलस्तर में गिरावट, जल की गुणवत्ता में कमी, पेयजल संकट, सिंचाई के लिए उपलब्ध जल के अभाव में कृषि उत्पादन में गिरावट आदि।
भारत में औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्ष 2001 में 1,816 घन मीटर से घटकर 2011 की जनगणना के अनुसार 1,545 घन मीटर हो गई। केंद्रीय जल आयोग के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2025 तक जलस्तर और घटकर 1,434 घन मीटर तथा वर्ष 2050 तक 1,219 घन मीटर हो जाएगा।


मार्च 2024 में द टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे IMD एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 540 जिले जल की कमी से जूझ रहे हैं। जल की कमी की वजह दिन में सामान्य से अधिक तापमान एवं कम बारिश बताया। दरअसल सूखे मौसम में वाष्पीकरण की प्रकिया ज्यादा तेजी से होती हैं।


भारत में प्रदूषित भूजल की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही हैं।
केंद्रीय भूजल बोर्ड की प्रकाशित रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है 440 जिलों से लिए गए सैंपल में से 20% से अधिक में नाइट्रेट पाया गया, जो कि बच्चों में मेथेमोग्लोबिनेमिया नामक बीमारी पैदा करता है। दरअसल भूजल में नाइट्रेट का मुख्य स्त्रोत रासायनिक उर्वरक और सेप्टिक टैंक से रिसाव के कारण था। इसके अलावा बिहार और पंजाब में आर्सेनिक की मात्रा अधिक पाई गई जो शरीर में कैंसर का मुख्य कारक हैं।

जन भागीदारी के साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत सरकार के द्वारा मिशन लाईफ, एक पेड़ के नाम, नेशनल सोलर मिशन , क्लाइमेट चेंज एक्शन प्रोग्राम साथ ही जल की समस्या को कम करने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की गई है जिनमें जल शक्ति अभियान, अमृत योजना,प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मिशन अमृत सरोवर योजना प्रमुख है। अटल भूजल योजना(ABY) यह योजना वर्ष 2018 में 7 अति दोहन ग्रसित राज्यों जैसे हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में लागू किया गया था। । इसके साथ हर राज्य जल की समस्या से निपटने के लिए अपनी अनेकों योजनाएं एवं अभियान चला रही है। लेकिन योजनाएं तभी सफल हो सकती हैं जब सरकार, स्थानीय प्रशासन, शैक्षणिक संस्थाएं, शोध संस्थान, स्थानीय नागरिक, एनजीओ सब मिल कर काम करे। आज भी बड़ी आबादी वर्तमान के पर्यावरण संकट के संदर्भ में जागरूक नहीं हैं। आम लोग, छात्रों, युवाओं को विशेष रूप से पर्यावरण संबंधी कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूक करने के साथ अपने व्यावहारिक जीवन में अमल करने की आवश्यकता तभी हम इस स्थानीय एवं वैश्विक संकट को कुछ हद तक कम कर सकते हैं।

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PhD पर्यावरण विज्ञान एवं अभियंत्रण विभाग IIT(ISM) , धनबाद
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